लाल सिंह
भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व का त्याग करने वाले स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्री लाल सिंह परथोली का जन्म ग्राम जाख तहसील चम्पावत, जिला पिथीरागढ़ के एक निर्धन परिवार में हुआ था. लाल सिंह ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई वार जेल की यात्रा की. 1942 के आन्दोलन में भी जेल की यातना भुगतनी पड़ी. वे आजीवन राष्ट्र की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे. इस देशभक्त का स्वर्गवास दिसम्बर 1971 को हो गया. लाल सिंह उत्तराखण्ड में हमेशा याद किए जाते रहेंगे.
नैनसिंह धीनी
नैनसिंह धीनी कुमाऊँ के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे. इनका जन्म ग्राम धीनी शिलंग तहसील चम्पावत में 2 अक्टूबर, 1900 में हुआ था, 20 वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए. सन् 1930-32 ई. तक जंगलात सत्याग्रह में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई तथा लम्बे समय तक अल्मोड़ा व बरेली जेलों में बंद रहे. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में लोहापाट में विशाल जुलूस का नेतृत्व किया, उन्हें 19 अगस्त को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया. वे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, हर्षदेव ओली के सम्पर्क में रहे तथा आजीवन कांग्रेस से जुड़े रहे.
मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को ग्राम काफल पानी, टिहरी गढ़वाल में हुआ था, साहित्य के प्रति बचपन से लगाव ही है. आप उत्तराखण्ड में सर्वाधिक प्रचलित एवं प्रसिद्ध कवि हैं. आपकी कई रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं. डबरालजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
सतपाल महाराज
सतपाल महाराज का जन्म 21 सितम्बर, 1951 को हरिद्वार के उपनगर कनखल में हुआ. सतपाल महाराज उत्तराखण्ड को राजनैतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नत शिखर पर आलोकित करने हेतु समर्पित है. उत्तराखण्ड आन्दोलन में घायलों एवं पीड़ित परिवारों की चिकित्सा का प्रबन्ध व आर्थिक सहयोग व भूकम्प त्रासदी में राहत सामग्री वितरण में सतपाल महाराज की भूमिका अग्रणी रही. महाराजजी आध्यात्मिक क्षेत्र में एक शिखर पुरुष हैं. देश-विदेश में लाखों अनुयायी मानव धर्म के विस्तारक हैं. राजनीतिक क्षेत्र में भी सतपाल महाराज की भूमिका अग्रणी रही है. 11वीं लोक सभा में संसदीय क्षेत्र पौड़ी से निर्वाचित हुए. देवगौड़ा सरकार में केन्द्रीय रेलमंत्री तथा गुजराल सरकार में केन्द्रीय सरकार में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पद को सुशोभित किया. वेतन के रूप में एक रुपया प्राप्त कर सतपालजी ने आदर्श राजनैतिक व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया. सतपालजी ने अपने मन्त्रित्व काल में अनेक उल्लेखनीय कार्य किए. उत्तराखण्ड में रेलवे सुविधाओं का विस्तार हुआ तथा अनेक कल्याणकारी योजनाएँ क्रियान्वित हुईं. इन्होंने देश-विदेश में अपने अलौकिक आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से उत्तराखण्ड व भारत का नाम रोशन किया है.
डॉ. मुरली मनोहर जोशी
डॉ. मुरली मनोहर जोशी का जन्म 1934 में दिल्ली में हुआ था, लेकिन पैतृक गाँव मल्ली, जनपद अल्मोड़ा है. उच्च शिक्षा एम. एस-सी. (भौतिकी) एवं डी. फिल. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1958 में प्राप्त की. इलाहाबाद विश्व- विद्यालय में ही लेक्चरर से प्रोफेसर पद तक सुशोभित किया. जोशीजी ने लगभग दर्जन शोध छात्रों को अपने निर्देशन में शोध कराया. राजनीतिक क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय हैं. 1944 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य बने. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर लगे प्रतिबन्ध हटाने के लिए सत्याग्रह किया. इस हेतु अनेक बार जेल की भी यात्रा की. आपात काल के दौरान मीसा के अन्तर्गत 26 जून, 1975 से 1977 तक बन्दी रहे. प्रख्यात भीतिकविद् डॉ. जोशीजी ने कई संगठनों के सदस्य एवं उच्य पद को सुशोभित किया. 1953-56 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, उत्तर प्रदेश शाखा के महासचिव वने. भारतीय जनसंघ के इलाहाबाद के संगठन सचिव पद को सुशोभित किया. उच्चस्तरीय शिक्षा कमेटी. उत्तर प्रदेश के 1968 में सदस्य बने. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर के 1977-79 तक प्रबन्ध समिति के सदस्य रहे हैं. 1977-79 तक रेलवे एक्सीडेंट कमेटी के सदस्य रहे. जनता पार्टी में विलय से पहले 1977 में जनसंघ पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव एवं उपाध्यक्ष रहे. अखिल भारतीय जनता पार्टी के 1991-93 तक अध्यक्ष पद को सुशोभित किया, भारतीय जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष एवं महासचिव पद को भी सुशोभित किया है. वर्तमान में केन्द्र मं मानव संसाधन मंत्री पद पर कार्यरतु हैं. डॉ. जोशीजी ने न केवल राजनैतिक व विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की है, वरनु लेखन कार्य में सफलता अर्जित की है. हिन्दी में दो पुस्तकें 'विकल्प' तथा प्रज्ञाप्रभा' प्रकाशित हुई हैं. लगभग 100 शोधपत्रों एवं लगभग 100 लेख विभिन्न वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. आपके कार्यों की सूची लम्बी है. आप सदैव अति- विस्मरणीय रहेंगे.
खड्गसिंह बाल्दिया
खड्गसिंह वाल्दिया का जन्म 1937 में पिथौरागढ़ जिले में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा मिशन स्कूल, पिथौरागढ़ से हुई तथा उच्च शिक्षा लखनऊ से ग्रहण की. वाल्दियाजी एक प्रतिभावन छात्र थे. अपनी प्रतिभा तथा योग्यता की वदौलत लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवक्ता पद प्राप्त हुआ. 1976 में वाल्दियाजी कुमाऊँ विश्वविद्यालय में भू-विज्ञान विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष रहे. भू-विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वाल्दिया को कई उपाधियाँ और पुरस्कार प्राप्त हुए. 1976 में डॉ. शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्त हुआ. इसके अतिरिक्त वर्ष 1992-93 के लिए राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
डॉ. आदित्यनारायण पुरोहित
डॉ. आदित्यनारायण पुरोहित का जन्म 30 जुलाई, 1940 को ग्राम किमनी जनपद चमोली में हुआ था, पादप रोग विज्ञान में एम. एस-सी. करने के पश्चात् 1968 में पंजाब विश्यविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि ग्रहण की. डॉ. पुरोहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. वन अनुसन्धान संस्थान, देहरादून में शोध सहायक रहे. ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय, वेनकुवर में भी अनुसन्धान सहायक रहे. गढ़वाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर रहे. गोविन्द बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान, कोसी में निदेशक के पद को सुशोभित किया.
भवानीदत्त पुनेठा
काली कुमाऊँ के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में भवानीदत्त पुनेठा का विशिष्ट स्थान रहा है. तहसील चम्पावत के भुमलाई नामक ग्राम में घनश्याम पुनेठा के पुत्र के रूप में 5 सितम्बर, 1908 को इनका जन्म हुआ था. श्री पुनेठा कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति थे. अपनी सरकारी नौकरी त्याग कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े तथा गांधीजी द्वारा संचालित आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया. बढ़ती लोकप्रियता के कारण धारा 26 डि. आई. आर. के तहत गिरफ्तार करके लोहायाट जेल में रखा गया पुनः अल्मोड़ा जेल में स्थानान्तरित किया गया. देश की स्वाधीनता के वाद एक सफल चिकित्सक के रूप में देश की सेवा की.
नैनसिंह
ग्राम बाराकोट के नैनरसिंह पुत्र श्री माधोसिंह का जन्म 25 अगस्त, 1898 को हुआ था. उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में सन् 1942 में 12 अगस्त, 1942 से 12 फरवरी, 1944 तक 1 वर्ष की नजरवंदी जिला जेल अल्मोड़ा व वरेली में काटी.
शेरसिंह व गणेश सिंह
आजादी के दो दीवाने भाई शेरसिंह व गणेश सिंह का जन्म बाराकोट के एक गरीब कृषक परिवार में हुआ था. इन दोनों भाइयों ने 1930 के जंगलात आन्दोलन के दौरान स्वतन्त्रता संग्राम के महासमर में भाग लिया. भारत छोड़ो आन्दोलन में दोनों भाइयों ने महती भूमिका अदा की. गौरव के प्रतीक
सुरजीत सिंह बरनाला
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल श्री सुरजीत सिंह बरनाला को नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड का प्रथम राज्यपाल नियुक्त होने का गौरव हासिल हुआ है, अपने गृह प्रदेश पंजाब से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले बरनाला मोरारजी देसाई की सरकार में कृषि मंत्री थे. चरम आतंकवाद के दौर में राजीव गांधी-संत हरचंद सिंह लोंगोवाल समझीते के बाद पंजाब में हुए चुनाव के बाद अकाली दल को विजय हासिल हुई जिसमें श्री बरनाला को पंजाब के मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ. वर्ष 1998 में गठित अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पुनः उन्हें कृषि मंत्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ. काँग्रेस के समर्थन से वनी चन्द्रशेखर द्वारा तमिलनाडू के राज्यपाल पद पर विराजमान तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की सरकार को वरखास्त करने के दवाव में न आने के कारण उन्हें लोकतान्त्रिक मूल्यों पर अडिग रहने के कारण शोहरत व प्रशंसा मिली. यद्यपि उन्हें पद से हटना पड़ा. मूदुभाषी सुरजीतसिंह बरनाला को जरूरत पड़ने पर कठोर कदम उठाने वाला भी माना जाता है,
नित्यानंद स्वामी
देश के 27वें राज्य उत्तराखण्ड के प्रथम ऐतिहासिक मुख्यमंत्री निर्वाचित होने का गौरव हासिल हुआ. 75 वर्षीय नित्यानंद स्वामी 1942 ई. की आजादी की लड़ाई में जेल गए थे. वे उ. प्र. विधान सभा के 1969 से 1974 तक सदस्य रहे. वे 1984 से लगातार तीन वार पर्वतीय अंचल के स्नातक क्षेत्र से विधान परिषद् के लिए चुने जाते रहे. 27 दिसम्बर, 1928 को देहरादून में जन्मे श्री स्वामी 1950-51 के दौरान डी. ए. वी. कॉलेज देहरादून के छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. इसी कालेज से उन्होंने 'वैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक भी रहे. जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में 1957, 62, 67 और 1969 में देहरादून क्षेत्र से विधान सभा चुनाव लड़े.
अजय विक्रम सिंह
नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड के पहले मुख्य सचिव अजय विक्रम सिंह 1967 वैच के आई. ए. एस. अधिकारी हैं. राजस्थान के अजमेर जिले के मूल निवासी ए. वी. सिंह की पहली नियुक्ति असिस्टेण्ट मजिस्ट्रेट के रूप में इलाहाबाद में हुई थी. जिलाधिकारी के रूप में उन्हें पहली तैनाती गाजीपुर में 1971 में मिली. वह मुरादाबाद और हाथरस के जिलाधिकारी तथा लखनऊ के आयुक्त रहे. भारत सरकार में वह कैबिनेट सेक्रेटरी के अनुसचिव, ओ. एस. डी. और डिप्टी सेक्रेटरी, नेशनल डिफेंस कॉलेज के निदेशक होते हुए वाद में संयुक्त सचिव और अपर सचिव के पद पर रहे. अक्टूबर, 1999 में वह प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास आयुक्त और प्रमुख सचिव बने, इस पद पर रहते हुए 55 वर्षीय अजय विक्रम सिंह को उत्तराखण्ड के पहले मुख्य सचिव बनने का गौरव हासिल हुआ. प्रदेश में निर्यात निगम के प्रबन्ध निदेशक सहित अन्य औद्योगिक उपक्रमों के प्रमुख रह चुके अजय विक्रम सिंह की अधिकांश तैनाती उद्योग से जुड़े विभागों में रही और इन्हें इस क्षेत्र का विशेषन्ञ माना जाता है. उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव के रूप में उनके सामाने इस राज्य को औ्योगिक दृष्टि से समर्थ और स्वावलम्बी वनाने की भी मुख्य जिम्मेदारी है. अशोक कान्त शरण को उत्तराखण्ड के पहले पुलिस महानिदेशक होने का गौरव हासिल हुआ है. इस नए दायित्व को वहन करने से पूर्व वह उत्तर प्रदेश पुलिस में होमगार्ड और नागरिक सुरक्षा के महानिदेशक पद पर थे. प्रतिष्ठित पारिवारिक भूमि के ए. के. शरण का जन्म 30 अप्रैल, 1942 को हुआ था. अपराध अन्वेषण के क्षेत्र में अनुभवी अधिकारी 1965 वैच के यू. पी. कैडर के आई. पी. एस. अधिकारी श्री शरण की शिक्षा-दीक्षा पटना में हुई. उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एम. ए. करने के अलावा विधि स्नातक की डिग्री भी हासिल की. इसके बाद वह भारतीय पुलिस सेवा में आ गए. प्रारम्भ में कानपुर के अपर पुलिस अधीक्षक रहे. पुलिस कप्तान के रूप में मुरादाबाद, वॉदा, आजमगढ़ व फतेहपुर में कानून व्यवस्था की कमान सम्भाली. इसके बाद वह गढ़वाल और लखनऊ रेंज के अलावा अपराध अन्वेषण शाखा में डी.आई.जी. रहे. अपर पुलिस महानिदेशक के रूप में दो बार अपराध अनुसन्धान इकाई में मुखिया रहे.
यशपाल आर्य
उत्तराखण्ड की पहली नवनिर्वाचित विधान सभा के अध्यक्ष यशपाल आर्य निर्विरोध चुने गये. आर्य का जन्म नैनीताल जिले के राजगढ़ विकास खण्ड के गाँव न्यूनरा (वोहराकोट) में एक साधारण परिवार में हुआ था. दलित समुदाय से जुड़े आर्य 1989 ई. में खटीमा विधान सभा क्षेत्र से पहली वार उत्तर प्रदेश विधान सभा के रूप में निर्वाचित हुए. वे 1993 में फिर से खटीमा से काँग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गये. वे उत्तराखण्ड की पहली निर्वाचित विधान सभा के लिए नैनीताल जिले की मुक्तेश्वर विधान सभा (आरक्षित) सीट से चुने गये.
भगतसिंह कोश्यारी
पृथक् उत्तराखण्ड आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखण्ड के दूसरे मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल हुआ. 17 जून, 1942 को अल्मोड़ा में जन्मे कोश्यारी की प्राथमिक शिक्षा मेहरगढ़ी और माध्यमिक शिक्षा कपकोट में पूरी हुई. उन्होंने 1964 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक डिग्री हासिल की. कुछ दिन तक एटा में अध्यापन कार्य भी किया, लेकिन अन्ततः कर्मभूमि पर्वत की वादियों को ही बनाया. आपातकाल के दौरान श्री कोश्यारी अल्मोड़ा व फतेहगढ़ जेल में निरुद्ध रहे. पृथकू राज्य के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं.
हेमवती नंदन बहुगुणा
धरती पुत्र के नाम से विख्यात श्री हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म सन् 1919 को ग्राम बुधाणी, पट्टी चलणस्थें जिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. छात्र जीवन से ही देश के राजनीतिक अवस्था के प्रति चिन्तित रहे. छात्र होते हुए भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और जेल गए. 1943- 45 के वर्षों में उत्तर प्रदेश छात्र फेडरेशन के सचिव तथा 1941। में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ की कार्यकारिणी के सदस्य रहे. बुहुगुणाजी ने अनेक मजदूर यूनियन की स्थापना की. उन्होंने मजदूर सभा इलाहाबाद, यू. पी. इण्डिया नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव, इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य, अखिल भारतीय विद्युत् कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रहे. इस प्रकार बहुगुणाजी ने मजदूरों की समस्याओं को समझने एवं सुलझाने में जीवनपर्यन्त संघर्ष किया. बहुगुणाजी ने अनेक महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया. बहुगुणाजी (1952-69) इलाहाबाद से विधायक चुने गए. 1958-60 तक उत्तर प्रदेश के श्रम एवं उद्योग राज्यमंत्री रहे. 1967 में वित्त एवं यातायात मंत्री रहे. इसके पश्चात् 1971- 74 तक इलाहाबाद लोक सभा के सदस्य बने. जनवरी 1980 में गढ़वाल से लोक सभा के सदस्य चुने गए. 1973-75 तक बहुगुणाजी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1977-79 तक भारत सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे. जुलाई 1979 से अक्टूबर 1979 तक भारत सरकार के वित्त मंत्री रहे. बहुगुणाजी जीवनपर्यन्त संघर्षशील और कर्मटी रहे. उत्तराखण्ड के विकास के लिए वे सतत् प्रयत्नशील रहे. उन्होंने विभिन्न योजनाओं, उद्योगों की उत्तराखण्ड में स्थापना करके यहाँ के विकास मार्ग को आगे बढ़ाया. उतराखण्डवासी उनके अमूल्य योगदान को सदैव याद रखेंगे.
सुमित्रानंदन पंत
प्रकृति और सौन्दर्य के सुकुमार कवि, छायावाद के प्रमुख स्तम्भ, अरविन्द दर्शन के व्याख्याता सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य की एक महान् विभूति थे. प्रकृति चित्रण के अमर गायक कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था. पंतरजी की उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ, यहीं पर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया. 28 दिसम्बर 1977 को इनका देहावसान हो गया. पंतजी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे. इनकी रचनाओं में लोकायतन, वीणा, पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, स्वर्ण धूलि, स्वर्ण किरण, युगपथ आदि प्रमुख हैं, पंत जी महर्षि अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित थे. युगान्त, युगवाणी और ग्राम्या में कवि समाजवाद और भौतिक दर्शन की ओर उन्मुख हुआ है. इन रचनाओं में कवि ने दीन-हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है.
लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी का जन्म । जुलाई, 1944 से टिहरी जिले के धंगण गाँव में हुआ था. जगूड़ीजी का परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं था इसलिए आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ा. सेना में भी कार्य किया, लेकिन वहुत दिन तक सेना में नहीं रहे. 1966-1980 तक शासकीय विद्यालय में सेवा की. साहित्य से अनुराग होने के कारण अनेक रचनाओं का सृजन किया. इसके लिए जगूड़ीजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. उनकी रचनाओं में-शंखमुखी शिखरों पर नाटक जारी है, रात अब भी मौजूद प्रमुख है 'महाकाव्य के विना' लम्बी कविताओं का संग्रह है. साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत श्री जगूड़ी ने उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में उपनिदेशक पद को सुशोभित किया है. वह राज्य के मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार रहे हैं और उन्हीं के परामर्श से राज्य का सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय गठित किया गया है.
मृणाल पाण्डेय
दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर समाचार वाचिका के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली मृणाल पाण्डेय का जन्म 26 फरवरी, 1946 को टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश ) में हुआ. सुविख्यात लेखिका शिवानीजी की पुत्री हैं. मृणालजी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की. आप शुरू से ही साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ी रहीं, आपने कई एक कहानी-संग्रह, उपन्यास तथा नाटक लिखे. कहानी-संग्रहों में दरम्यान, शब्दवेधी, एक नीच ट्रेजडी महत्वपूर्ण हैं. उपन्यासों में विरुद्धा पटरंगपुर पुराना महत्वपूर्ण है नाटकों में काजर की कोठरी, चोर निकल के भागा, जो राम रचि राखा उल्लेखनीय हैं. मृणालजी सम्पादन का भी कार्य किया. 'वामा', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' व दैनिक हिन्दुस्तान की सम्पादक रह चुकी हैं.
डॉ. पार्थसारथि डबराल
डॉ. पार्थसारथि का जन्म 25 फरवरी, 1936 को ग्राम निमली डबरालस्यूँ गढ़वाल में हुआ था. इनकी शिक्षा ग्राम तिमली से प्रारम्भ होकर दुगडा एवं देहरादून में हुई तथा शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्यालय में सम्पन्न हुआ. डॉ. डबराल की साहित्यिक शुरूआत कक्षा 9 से ही प्रारम्भ हो गई थी. 18 वर्ष की किशोरावस्था में ही इनकी पहली कविता 'कर्मभूमि' में छपी. अध्ययनकाल में ही इनकी प्रथम कविता-संग्रह 'रेत की छाया' 1962 में छपी. इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय कविता-संग्रह 'लंगड़ी किरण' 1971 में प्रकाशित हुआ. 'दो वैल एक ट्रेक्टर' इनकी अन्य कविता- संग्रह है, 1979 में डबराल की खण्डकाव्य 'धरती से पृथ्वी" प्रकाशित हुआ. 1980 में खण्डकाव्य 'नारीतार्य' प्रकाशित हुआ. 'उत्तस्यांदिशी' कृति उत्तराखण्ड के जनजीवन पर लिखी गई कृति है, डबराल ने 11 संगीतपरक भी लिखे. संगीत और कथ्य की दृष्टि से इन काव्य नाटिकाओं का अत्यन्त सम्मान हुआ. डबराल को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सुभाष धूलिया
सुभाष धूलिया का जन्म 23 जून, 1952 में ग्राम मदनपुर पौढ़ी गढ़वाल में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम में हुई. उच्च शिक्षा इन्होंने देहरादून से प्राप्त की. 1977 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म बुडापेस्ट से किया. इसके अलावा 1987 में फिल्म एवं दूरदर्शन संस्थान पूना से टेलीविजन प्रोडक्शन कोर्स किया. आपने अनेक स्क्रिप्ट्स का लेखन एवं सम्पादन किया. दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया. वर्तमान समय में धूलियाजी मास कम्युनिकेशन के भारतीय संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर हैं तथा अनेक पत्र- पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते हैं.
डॉ. डबराल
डॉ. डबराल की साहित्यिक शुरूआत कक्षा 9 से ही प्रारम्भ हो गई थी. 18 वर्ष की किशोरावस्था में ही इनकी पहली कविता 'कर्मभूमि' में छपी. अध्ययनकाल में ही इनकी प्रथम कविता-संग्रह 'रेत की छाया' 1962 में छपी. इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय कविता संग्रह 'लंगड़ी किरण' I971 में प्रकाशित हुआ. 'दो बैल एक ट्रेक्टर' इनकी अन्य कविता- संग्रह है. 1979 में डबराल की खण्डकाव्य धरती से पृथ्वी' प्रकाशित हुआ. 1980 में खण्डकाव्य 'नारीतार्थ' प्रकाशित हुआ. 'उत्तस्यांदिशी' कृति उत्तराखण्ड के जनजीवन पर लिखी गई कृति है. डबराल ने ॥ संगीतपरक भी लिखे. संगीत और कथ्य की दृष्टि से इन काव्य नाटिकाओं का अत्यन्त सम्मान हुआ. डबराल को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सुभाष धूलिया
सुभाष धूलिया का जन्म 23 जून, 1952 में ग्राम मदनपुर पौढ़ी गढ़वाल में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम में हुई. उच्च शिक्षा इन्होंने देहरादून से प्राप्त की. 1977 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म बुडापेस्ट से किया. इसके अलावा 1987 में फिल्म एवं दूरदर्शन संस्थयान पूना से टेलीविजन प्रोडक्शन कोर्स किया. आपने अनेक स्क्रप्ट्स का लेखन एवं सम्पादन किया. दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया. वर्तमान समय में धूलियाजी मास भारतीय संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर हैं तथया अनेक पत्र- पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते हैं.
मेजर जनरल भुवनचन्द खंडूरी
भुवनचन्दजी का जन्म 1 अक्टूबर, 1933 को देहरादून में हुआ था. इनका पैतृक गाँव महरगाँव, जिला पीड़ी गढ़वाल में है. प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में तथा हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा मेसमोर इण्टर कॉलेज, पीड़ी से उत्तीर्ण की. बी. एस-सी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से तथा वी. ई. (सिविल) मिलिट्री इंजीनियरिंग कॉलेज पूना से उत्तीर्ण की. इनका भारतीय सेना के लिए चयन हुआ तथा सेना के उच्चतम पद तक पहुँचे. सेना से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् सक्रिय राजनीति से मोर्चा सँभाला और भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश शाखा के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए. इसके साथ ही भाजपा उत्तराखण्ड, सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी भाजपा अध्यक्ष, पूर्व सैनिक सेवा परिषद् जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे हैं. डूरीजी एक कुशल सैनिक, सफल प्रशारक के साथ- साथ खेल से भी अप्रतिम लगाय पा. मिलिडदी इंजीनियरिंग कॉलेज, पुणे से फुटवाल, हांकी, र्वयैश और टेनिस में कलर होल्डर भी हैं. खडरी को 1982 में अति विशिष्ट सोवा मेडल से सम्मानित किया गया. सन् 1991-96 की लोक सभा में गढ़वाल से विजय प्राप्त की. न्यायप्रियता, मिलनसार स्वभाव व स्व 8वि के कारण उत्तराखण्ड में विशेष लोकप्रिय हैं, आप उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके है.
हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी का जन्म 4 मई, 1935 में उत्तराखण्ड में हुआ. हिन्दी के अग्रणी कथाकार एवं पत्रकार विगत चालीस वर्षों से लेखन तथा पत्रकारिता क्षेत्र में सकिय हैं आपने कई वर्षों तक देश की अग्रणी पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में भी कार्य कर चुके हैं. साहित्यिक क्षेत्र में हिमांशु जोशी ने अनेक उल्लेखनीय कार्य किया है. आपकी अनेक रचनाएँ, उपन्यास, कहानी- संग्रह, कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. उपन्यासों में अरण्य, महासागर, छाया मत छूना, मन कगार की ओर और सूराज महत्वपूर्ण हैं. कहानी-संग्रह में संघर्ष गाथा, चर्चित कहानियाँ, आंचलिक कहानियाँ, श्रेष्ठ प्रेम कहानियाँ प्रमुख हैं. जोशीजी हिन्दी साहित्य जगत् के श्रेष्ठ कथा लेखक हैं. उन्होंने प्रचुर मात्रा में लेखन कार्य किया है, जोकि संख्यात्मक होने के साथ साथ गुणात्मक दृष्टि से भी बहुत श्रेष्ठ है. उन्हें साहित्यिक दृष्टि से भी वहुत सम्मान मिला है. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कार से नवाजा गया है. इसके अलावा हिन्दी अकादमी से तथा राजभाषा विभाग, विहार से पुरस्कृत किया गया है. पत्रकारिता के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
विद्यासागर नौटियाल
विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर, 1933 को टिहरी गढ़वाल जिले के भागीरथी तट पर वसे गाँव मालीदेवल में हुआ था. नीटियालजी छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे, मात्र 14 साल की किशोरावस्था में टिहरी रियासत के सामंती शासन (1947) के विरुद्ध जनसंघर्ष करते हुए पहली बार जेल गए. प्रखर कम्युनिस्ट नेता नरेन्द्र साकलानी की जनक्रान्ति से प्रेरित होकर वामपंथी आन्दोलन में सक्रिय हो गए. राजनीति में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ साहित्य में भी सक्रियता बाल्यावस्था से ही रही. 1953 में पहली कहानी भैंस का कट्या' प्रकाशित हुई जिसने नौटियालजी को साहित्य जगत् में प्रसिद्धि दिला दी. 1980 में नौटियालजी टिहरी जिले के देवप्रयाग क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए. नौटियालजी सक्रिय राजनीति में रहने के साथ साथ साहित्य से भी जुड़े रहे. इनकी अनेक कहानियाँ व उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित होती रहती हैं. सोना (नय) कहानी का नाट्य रूपान्तरण दूरदर्शन पर भी प्रसारित हो चुका है. नौटियालजी व्यवसाय से एक प्रतिष्ठित वकील हैं, एक साहित्यकार, वामपंथी आन्दोलन और वकालत तीनों विपरीत जीवन के कोणों को नौटियाल ने अपनी प्रतिभा, लगन व निष्ठा से एक कर दिया है. वे युवकों के प्रेरणा ग्रोत हैं.
मोहनलाल बाबुलकर
बाबुलकरजी का जन्म 1931 को ग्राम मुद्दियाली, देवप्रयाग, गढ़वाल में हुआ था. मोहनलालजी उच्चकोटि के आँचलिक साहित्यकार हैं. आंचलिक साहित्यकार मोहनलाल वाबुलकरजी ने अनेक रचनाओं का सृजन किया. इन रचनाओं में हिमालय के वरदान, मिट्टी में सोना, लड़खड़ाते कदम, सही रास्ता, दक्षिण भारत, अनीपचारिक शिक्षा, दहेज, पशुधन, अँधेरे से उजाला, सूरजमुखी की खेती, ग्रामीण उद्योग प्रमुख हैं. बाबुलकरजी कई पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक भी हैं. इनमें देवप्रयाग, सांस्कृतिक सम्मेलन पत्रिका, पय कादम्बरी, नवज्योति मासिक पत्रिका प्रमुख हैं. राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत लेखक श्री बाबुलकरजी विविध पत्र-पत्रिकाओं में स्वतन्त्र लेखन कार्य में संलग्न हैं. उत्तराखण्ड की उन्नति ही इनके जीवन का लक्ष्य है. यही कारण है कि सभी रचनाओं की विषय-वस्तु उत्तराखण्ड ही रहता है. इनकी रचनाओं में क्षेत्र के विषय में चिन्ता य आशावादिता की झलक दिखाई देती है.
डॉ. नीलाम्बर पंत
डॉ. नीलाम्बर पंत का जन्म 25 जुलाई, 1931 को अल्मोड़ा में हुआ था. इण्टरमीडिएट की परीक्षा अल्मोड़ा कॉलेज के पास करने के बाद सन् 1948 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश किया. सन् 1952 में उन्होंने भौतिकी में स्नातकोत्तर किया. 1965 में उन्हें उस दल में शामिल किया गया, जिसे भारत का प्रथम प्रयोगात्मक उपग्रह संचार पृथ्वी स्टेशन स्थापित करने का कार्य सींपा गया था. पूना के निकट आर्वी में यह स्टेशन स्थापित किया गया जिसके निर्माण तथा प्रबन्धन में डॉ. पंत का विशेष योगदान रहा. इसके अतिरिक्त अहमदाबाद, दिल्ली और अमृतसर के पृथ्वी केन्द्रों में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट साइट स्थापित करने में इनका सराहनीय योगदान रहा. हॉ. नीलाम्बर पंत 1977 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के अन्तरिक्ष प्रायोगिक केन्द्र, अहमदाबाद के अध्यक्ष विपक्त किए गए. भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के केन्द्र का निदेशक के पद को भी सुशोभित किया. सन 95 में भारतीय अन्तरिक्ष उपग्रह केन्द्र, बंगलौर का निदेशक नियुक्ता किया गया. इनके दिशा निर्देश में तीन वड़ी उपग्रह परियोजनाएँ आई. आर. एस. और एस. आर. ओ. एस. एवं इन्सैट-2 सफलतापूर्वक तैयार किया गया. अन्तरिक्ष के क्षेत्र में किए गए अमूल्य योगदान के लिए डॉ. पंत को अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है. सन् 1976 में इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार के क्षेत्र में 1975 का श्री हरिओम आश्रम प्रीति, डॉ. विक्रम साराभाई अनुसन्धान पुरस्कार प्रदान किया गया. भारत सरकार द्वारा 1984 में पदुमश्री" से अलंकृत किया गया. 'पद्मश्री' प्राप्त करने वाले डॉ. पंत पहले वैज्ञानिक हैं. 1985 में डॉ. विरन राय अन
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