संथारा क्या होता है? |What is Santhāra?|
संथारा क्या होता है?
संथारा का मूल आधार यह है कि जब कोई व्यक्ति अपनी
मृत्यु को निकट मानता है या वह गंभीर असाध्य रोग, विकलांगता,
या अत्यधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त होता है, तो वह
शांत मन और पूर्ण जागरूकता के साथ इस प्रथा को अपनाता है। यह आत्मा को शुद्ध करने
और भौतिक मोह-माया से मुक्त होने का एक साधन माना जाता है। जैन धर्म आत्महत्या का
पुरजोर विरोध करता है, और संथारा को आत्महत्या से अलग माना जाता है
क्योंकि यह तनाव या निराशा के कारण नहीं, बल्कि
आध्यात्मिक उद्देश्य और शांत चित्त के साथ लिया जाता है।
संथारा
की प्रक्रिया
- संथारा केवल उन
लोगों के लिए है जो गंभीर बीमारी, वृद्धावस्था,
या ऐसी स्थिति में हों जहां मृत्यु निकट हो। बच्चों या युवाओं को
संथारा लेने की अनुमति नहीं है।
- संथारा लेने से
पहले व्यक्ति को अपने परिवार, जैन समाज,
और आचार्य (जैन धर्मगुरु) से अनुमति लेनी होती है। यह अनुमति व्यक्ति
की शारीरिक और मानसिक स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद दी जाती है।
- यह प्रक्रिया
स्वैच्छिक होती है, और किसी भी प्रकार का दबाव या जबरदस्ती निषिद्ध
है।
- संथारा की
शुरुआत सूर्योदय के बाद 48 मिनट के उपवास
(नौकार्थी) से होती है, जिसमें व्यक्ति जल भी ग्रहण नहीं करता।
- धीरे-धीरे भोजन
और जल की मात्रा कम की जाती है, और व्यक्ति
भौतिक इच्छाओं और मोह-माया का त्याग करता है।
- इस दौरान
व्यक्ति भगवान महावीर के उपदेशों का पालन करते हुए ध्यान, प्रार्थना,
और आत्मचिंतन में लीन रहता है।
- संथारा लेने
वाला व्यक्ति अपने मन से सभी बैर, द्वेष, और
नकारात्मक भावनाओं को त्याग देता है और शांतिपूर्वक मृत्यु की प्रतीक्षा करता है।
3. उद्देश्य:
- संथारा का
मुख्य उद्देश्य आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करना और मोक्ष के मार्ग को
प्रशस्त करना है।
- इसे जीवन की
अंतिम साधना माना जाता है, जो मृत्यु को
एक उत्सव के रूप में स्वीकार करती है।
संथारा
की पूर्व स्थिति
- प्राचीन उदाहरण:
- महान सम्राट चंद्रगुप्त
मौर्य ने 290 ईसा पूर्व में जैन धर्म के आचार्य भद्रबाहु के
साथ दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में संलेखना ग्रहण की थी। उनके समाधि
स्थल का शिलालेख आज भी मौजूद है।
- जैन ग्रंथों
में कई मुनियों और साधकों के संथारा लेने के उदाहरण मिलते हैं, जो इसे
एक पवित्र और सम्मानजनक कार्य मानते थे।
- सांस्कृतिक महत्व:
- प्राचीन काल
में संथारा को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। यह मृत्यु को एक
आध्यात्मिक उत्सव के रूप में स्वीकार करने का प्रतीक था।
- यह प्रथा जैन
धर्म के अहिंसा और आत्मसंयम के सिद्धांतों पर आधारित थी, जहां
व्यक्ति अपने अंतिम समय में भी धर्म के प्रति समर्पित रहता था।
संथारा
की वर्तमान स्थिति
- संथारा आज भी
जैन मुनियों और कुछ गृहस्थों द्वारा लिया जाता है। उदाहरण के लिए, 2023 में
राजस्थान के जसोल गांव में एक जैन दंपति, पुखराज संखलेचा
और उनकी पत्नी गुलाब देवी, ने संथारा
ग्रहण किया, जिसे समाज ने उत्सव के रूप में मनाया।
- 2022 में सिलीगुड़ी
में 58 वर्षीय मंजू कुंडलिया ने संथारा लिया, जिसके
बाद यह प्रथा फिर से चर्चा में आई।
- हाल ही में,
मई 2025 में मध्यप्रदेश के इंदौर में एक सवा तीन साल की
बच्ची के माता-पिता द्वारा उसे संथारा दिलवाने का मामला सामने आया, जिसने
इसे और विवादास्पद बना दिया। यह मामला नैतिक और कानूनी सवाल उठाता है, क्योंकि
जैन धर्म में बच्चों को संथारा की अनुमति नहीं है।
- संथारा को लेकर
समाज में दो विचारधाराएं हैं। जैन समुदाय इसे धार्मिक स्वतंत्रता और आत्मशुद्धि का
हिस्सा मानता है, जबकि कुछ लोग इसे अमानवीय और आत्महत्या के समान
मानते हैं।
- सामाजिक दबाव
के आरोप भी लगते हैं, जहां परिवार या समाज द्वारा संथारा को प्रोत्साहन
देने की बात कही जाती है, क्योंकि यह
परिवार का सामाजिक सम्मान बढ़ाता है।
संथारा
के कानूनी पहलू
1. 2006 में जनहित याचिका:
- निखिल सोनी
नामक व्यक्ति ने राजस्थान हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें
संथारा को आत्महत्या के समान और आधुनिक समय में अस्वीकार्य बताया गया। याचिका में
यह भी कहा गया कि संथारा से परिवार का सामाजिक रुतबा बढ़ता है, जिसके
कारण इसे प्रोत्साहन मिलता है।
- राजस्थान हाई
कोर्ट ने 10 अगस्त 2015 को
संथारा को गैरकानूनी घोषित कर दिया और इसे आत्महत्या के समान माना। कोर्ट ने कहा
कि संथारा लेने या इसमें सहायता करने वालों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 306
(आत्महत्या के लिए उकसाना) या धारा 309 (आत्महत्या
का प्रयास) के तहत कार्रवाई हो सकती है।
- इस फैसले का
जैन समुदाय ने व्यापक विरोध किया, और पूरे समाज
ने सड़कों पर प्रदर्शन किए।
3. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
- जैन समुदाय की
अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राजस्थान
हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी, जिससे संथारा
प्रथा को फिर से वैधता मिली। सुप्रीम कोर्ट ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे
में माना और कहा कि इस पर और विचार की आवश्यकता है।
- सुप्रीम कोर्ट
ने 2018 में राइट टू डेथ विद डिग्निटी (गरिमा के साथ
मृत्यु का अधिकार) को मान्यता दी, जिसमें पैसिव
यूथेनेशिया को अनुमति दी गई। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संथारा को इस अधिकार
के तहत देखा जा सकता है, क्योंकि यह
स्वैच्छिक और जागरूक निर्णय है।
4. वर्तमान कानूनी स्थिति:
- वर्तमान में,
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद संथारा को धार्मिक प्रथा के रूप
में मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह अभी
भी विवादास्पद है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि संथारा को आत्महत्या से अलग
करना कठिन है, क्योंकि यह जानबूझकर जीवन समाप्त करने का कार्य
है।
- बच्चों या
युवाओं को संथारा देने के हालिया मामले, जैसे इंदौर का
मामला, कानूनी जांच के दायरे में आ सकते हैं, क्योंकि
जैन धर्म स्वयं बच्चों को संथारा की अनुमति नहीं देता।
संथारा
और आत्महत्या में अंतर
- मानसिक स्थिति: आत्महत्या निराशा, तनाव,
या भावनात्मक अस्थिरता के कारण होती है, जबकि
संथारा शांत मन, धार्मिक उद्देश्य, और
पूर्ण जागरूकता के साथ लिया जाता है।
- उद्देश्य: आत्महत्या का उद्देश्य जीवन से पलायन
है, जबकि संथारा का उद्देश्य आत्मशुद्धि और मोक्ष है।
- प्रक्रिया: आत्महत्या अचानक और हिंसक हो सकती है,
जबकि संथारा एक धीमी, नियंत्रित,
और धार्मिक प्रक्रिया है।
अन्य
धर्मों में समान प्रथाएं
- हिंदू धर्म: संजीवन समाधि और पर्योपवेश में साधु
अपनी मृत्यु को स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए, कई
हिंदू साधुओं ने समाधि ली है, जो संथारा से
मिलती-जुलती है।
- बौद्ध धर्म: कुछ बौद्ध परंपराओं में भी आत्मसंयम
और मृत्यु के प्रति समर्पण के उदाहरण मिलते हैं।
निष्कर्ष
संथारा जैन धर्म की एक गहन आध्यात्मिक प्रथा है,
जो आत्मशुद्धि और मोक्ष के लिए अपनाई जाती है। यह प्राचीन काल से चली
आ रही है और आज भी जैन समुदाय में इसका महत्व है। हालांकि, इसे
आत्महत्या मानने वाले और धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में देखने वालों के बीच विवाद
बना हुआ है। कानूनी रूप से, सुप्रीम कोर्ट
ने इसे धार्मिक प्रथा के रूप में मान्यता दी है, लेकिन
नैतिक और कानूनी सवाल अब भी उठते हैं, खासकर बच्चों
या युवाओं से जुड़े मामलों में। यह प्रथा जैन धर्म के अहिंसा, संयम,
और आत्मचिंतन के सिद्धांतों को दर्शाती है, लेकिन
आधुनिक समाज में इसके नैतिक और कानूनी पहलुओं पर बहस जारी है।
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