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प्रकीर्ण की प्रमुख विधाएँ – कुमाऊँनी लोक साहित्य में|Major genres of Prakirna – in Kumaoni folk literature.

 
 प्रकीर्ण की प्रमुख विधाएँ – कुमाऊँनी लोक साहित्य में|Major genres of Prakirna – in Kumaoni folk literature.


प्रकीर्ण

प्रकीर्ण के अन्तर्गत कुमाऊँनी लोक साहित्य में लोकोत्तियाँ, पहेलिया तथा मुहावरे सम्मिलित हैं. 
    लोकोत्तियाँ का अर्थ है-जनसामान्य का कथन, जनसामान्य की उसी उक्ति को लोकोक्ति कहा जा सकता है जो अपनी अभिव्यक्तिगत विलक्षणता के कारण समस्त जनसमूह की स्वीकार्यता प्राप्त कर लेती है, प्रारम्भ में व्यक्ति विशेष द्वारा प्रयुक्त होती है एवं बाद में सार्वजनिक होकर लोकोक्ति का रूप धारण कर लेती है. लोकजीवन में लोकोक्तियों का प्रयोग नीति परक सूक्तियों की तरह होता है. क्योंकि ये मानव जीवन के अनमोल रत्न हैं अनुभवों से प्राप्त होते हैं तथा समाज में प्रकाश फैलाने की अद्भुत क्षमता होती है.

प्रकीर्ण शब्द का सामान्य अर्थ होता है "विविध" या "विविध प्रकार के बिखरे हुए विषय"। कुमाऊँनी लोक साहित्य में प्रकीर्ण के अन्तर्गत वे समस्त लोक अभिव्यक्तियाँ आती हैं जो कविता, गीत, नाटक, कथा आदि जैसी मुख्य विधाओं में नहीं आतीं, लेकिन फिर भी लोक जीवन, संस्कृति और भाषा का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। इसके अंतर्गत मुख्यतः लोकोक्तियाँ (proverbs), पहेलियाँ (riddles), मुहावरे (idioms) आदि को शामिल किया जाता है।

यह सब लोक मानस की चेतना, अनुभव, और सामाजिक-सांस्कृतिक सोच को सरल, व्यंग्यात्मक, और रोचक भाषा में व्यक्त करते हैं।


1. लोकोक्तियाँ (Proverbs)

  • ये ऐसे छोटे वाक्य होते हैं जो जीवन के अनुभवों से निकले होते हैं और किसी नैतिक, सामाजिक या व्यावहारिक बात को संक्षेप में कहते हैं।

  • ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप में चलते आए हैं।

❖ उदाहरण:

  • "जस जस बाड़ै उग्यौ, तस तस निहुर्यौ।"
    (जैसे-जैसे बांस ऊँचा होता है, वैसे-वैसे झुकता है – विनम्रता का संदेश)

  • "जै पैग्यो जै ल्यौ।"
    (जो बोओगे वही काटोगे)


2. मुहावरे (Idioms)

  • ये शब्दों के समूह होते हैं जिनका अर्थ शाब्दिक न होकर विशेष सांकेतिक होता है। ये भाषा को रोचक, व्यंजक और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाते हैं।

❖ उदाहरण:

  • "आख फूटणु" – (अचानक कुछ न देख पाना या समझ न आना)

  • "भक मार्नु" – (गुस्से में बोल पड़ना)

  • "गाड़ो खणनु" – (किसी विषय में पूरी तरह लग जाना या बारीकी से काम करना)


3. पहेलियाँ (Riddles)

  • ये लोकबुद्धि की परीक्षा लेने वाली रोचक अभिव्यक्तियाँ हैं, जिनका उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धि परीक्षण भी होता है।

  • पहेलियाँ बच्चों और बुजुर्गों के बीच संवाद और ज्ञान का साधन रही हैं।

❖ उदाहरण:

"कालो भैंसो बग्यौ, पाछै सेतो पूँछ।"
(उत्तर – रात और सुबह)

"ऊँचो ठुलो बिना ढुङ्गा,
झन-झन बाजे बिना तुङ्गा।"

(उत्तर – बादल और बिजली)


🌼 प्रकीर्ण की विशेषताएँ – कुमाऊँनी लोक साहित्य में

  1. मौखिक परंपरा से जुड़े हुए होते हैं।

  2. सामाजिक अनुभव, व्यंग्य और जीवन के गूढ़ सत्य को सरल भाषा में कहते हैं।

  3. आम बोलचाल में लगातार उपयोग में आने से ये लोक चेतना का दर्पण बनते हैं।

  4. लोकजीवन के नैतिक मूल्यों, रीति-रिवाजों, विश्वासों को व्यक्त करते हैं।

  5. शिक्षा, मनोरंजन और संवाद का माध्यम रहे हैं।


📚 कुमाऊँनी लोक साहित्य में प्रकीर्ण का महत्व:

  • ये लोक संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में सहायक हैं।

  • ग्रामीण समाज में नैतिक शिक्षा देने, हास्य-व्यंग्य करने और अनुभव साझा करने का माध्यम हैं।

  • ये हमारी भाषाई विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है।